दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के वो जा रहा है कोई
शब-ए-ग़म गुज़ार के !!
वीराँ है मय-कदा
ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार
के !!
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं सो उस के शहर में
कुछ दिन ठहर के देखते हैं,
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से सो अपने आप को
बरबाद कर के देखते हैं !!
कमी न की तिरे वहशी ने ख़ाक उड़ाने में जुनूँ का नाम
उछलता रहा ज़माने में !!
'फ़िराक़' दौड़ गई रूह सी ज़माने में कहाँ का दर्द भरा
था मिरे फ़साने में !!
मैं फूल टाँक रहा हूँ तुम्हारे जूड़े में तुम्हारी आँख
मुसर्रत से झुकती जाती है ,
न जाने आज मैं क्या बात कहने वाला हूँ ज़बान खुश्क है
आवाज़ रुकती जाती है !!
आज फिर टूटेंगी तेरे घर नाज़ुक खिड़कियाँ
आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में!!
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से,
मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता !!